श्रद्धा और विश्वास के बिना राम- नाम अधुरा :: मोरारी बापू ।।  राम-नाम  से गूंज रही "काशीनगरी"।।   भैरव मानस के प्रसंग से  हुये  विभोर।।

श्रद्धा और विश्वास के बिना राम- नाम अधुरा :: मोरारी बापू ।। 



राम-नाम  से गूंज रही "काशीनगरी"।। 
 भैरव मानस के प्रसंग से  हुये  विभोर।।


 

उत्तरकाशी( चिरंजीव सेमवाल)।    प्रख्यात कथा वाचक संत मोरारी बापू ने  बाबा विश्वनाथ की नगरी व स्वर्ग लोक की बेटी भगवती गंगा के तट  उत्तरकाशी मैं आयोजित नौ दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान श्री राम कथा के दिव्य आयोजन मैं प्रवचन करते  कहा कि श्रद्धा और विश्वास के बिना राम नाम अधुरा इस लिए प्रभु राम के नाम के लिये दोनों  अवश्य है। उन्होंने कहा कि सत युग के लोगों का पूरा समय ध्यान मैं बीतता था , तीतृय युग मैं यज्ञ ओर द्धवापर युग मैं पूजा पाठ, जबकि कलयुग मैं सिर्फ नाम की महिमा  हैं कलयुग के मनुष्य केवल नाम के लिये काम करते हैं। इस लिए तुलसी दास जी कहते हैं कि  कलिकाल मैं यदि कोई राम नाम का गुणगान करता हैं वह चाहिए आभाव ले या सौभाओ से ले तो भी बहुत है।

 उन्होंने  कहा कि राम और रावण मैं यही  फर्क है रावण मैं बल था, लेकिन शीतलता नहीं थी। जबकि राम के अंदर शीतलता है। रावण बलवान था जिससे धती कांप ऊठती थी और इंद्रलोक  भी घबरा जाते थे। बल पांच प्रकार के होते हैं शरीर  बल, मानसिक बल ,मनोबल, आत्म बल और बहू बल रावण के अंदर बल था तो राम के अन्दर शिलता थी। 

  कथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि"उत्तरकाशी"  मैं   भैरव आनंद हैं। लोग भैरव को शत्रु नाशक के रूप में भी मान्यता रखते है और  से तंत्र साधना करने वालो ने उनको तंत्र विद्या में एक विशेष स्थान दिया है। मेरा तंत्र विद्या मतलम्बियों से कोई विरोध नही है,लेकिन जहाँ तक मेरा अपना मानना है,भैरव शत्रु नाशक तो है लेकिन मेरे अपने ही मन के "षष्ट रिपु" नाशक के रूप में।काम,क्रोध,मोह,भय, लोभ,अहंकार के नाशक के रूप में,और इतना ही नही नाशक भी नही बल्कि इनका परिवर्तन अच्छे शासक के रूप में अपने अंदर उदय होने के संबंध में है। जरूरी नही की शत्रु का दमन करके ही शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है,उसे अहिंसा द्वारा भी परिवर्तित किया जा सकता है।

और इस कारण ये "आनंद भैरव" है, भी है । गुजराती साहित्य कारो ने भैरव के 35 नाम दिए है और जिनमे आनन्द भैरव भी है। ये भाव बापू ने कथा के पाचवें  दिन श्रोताओं के सम्मुख व्यक्त किये।

 

आज  मुरारी बापू द्वारा भैरव को एक नए ही नजरिये से रक्खा गया, जो कि आज के समय मे जो किसी दूसरे की संस्कृति पहरावे, पूजा पद्धति,बोली-भाषा,लिपि को सहन न करने की परवर्ती देश मे विकसित हो रही और दम्भ विश्व गुरु बनने का हो,को समाप्त करने में सहायक हो सकती है,औऱ केवल "विवेक" जाग्रत करके  ही ऐसा सम्भव है,शायद रामराज्य की परिकल्पना भी यही है और मेरे ऋषियों,संतो मानस-मर्मज्ञों का भाव भी इसी विवेक को जाग्रत करने की ओर है। कथा मैं प्रसिद्ध नृत्य कार   कौशिक चक्रवर्ती की प्रस्तुति से  सबको मंत्र मुक्त कर दिया।  काथा रमाशंकर बाजोरिया परिवार द्धारा करया जा रहा जिसमें देश के गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडु , महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों से भारी संख्या मैं लोग कथा के रसपान करने पहुंचे हैं।