रवांईल्टा भाषा मैं विलुप्त खाण को उकेर रही अनुरूपा 'अनु'।। "" कोय न लांद अब हल ""

 


 रवांईल्टा भाषा मैं विलुप्त अखाण को उकेर रही अनुरूपा 'अनु'।।
"" कोय न लांद अब हल ""



आमक त डोखरई भरी,
पर कमाण वालियुं की खरी,


मां-बाबा बिचार बुड़िया बाजिगे,
बटे पु तियंकी सबा शांईश नइगी,


त अब बांजई पडिगे सबा डोखर,
अं कुण ला ब हल,


कुण ला तियुं डोखरियों पोडो मल,
रईगे अब बांजई तियुंक स डोखर,


बुड़िया नाई मास्ते छंई न दुकदो तियुंक जिऊ,
तकई ब आपक आपड़ डोकरियुं ,


पोडो कमाऊ त खांऊ त,
अर किचा बिकाऊं पु तो,


त का कर कुण ला आमक हल,
अर कुण ला मल ,


गांव पोड़ मनाई रई सबुआरी ,
कि दुई दूस ओडो लाओर,


देई आमरो हल,
पंईसा दउणी का शुदई ल्वाणी आम तुमुके हल,


त पु कोये न हंद राजि ,
सबा नई भाजि ,


कोलेकि कोय न लांद अब हल,
भांव जो भुक्याई रल ,


बजार के आणई अर खाई ,
आपड़ डोखर बांजई थई ।।



                    - अनुरूपा'अनुु