खामोश हो गई वह जोशीली आवाज :::  पत्रकार स्वर्गीय सुरेंद्र पुरी प्रथम पुण्य तिथि  स्मृति शेष श्रद्धांजलि।। चिरंजीव सेमवाल

खामोश हो गई वह जोशीली आवाज



 पत्रकार स्वर्गीय सुरेंद्र पुरी प्रथम पुण्य तिथि  स्मृति शेष श्रद्धांजलि।।



चिरंजीव सेमवाल


उत्तरकाशी। संसार में नाना प्रकार के जीवों का जन्म होता हैं जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। लेकिन उनका जीवन ही वस्तुतः धन्य है, जो संसार में अपने सदगुणों एवं प्रतिभा के कारण अपनोें के बीच सदैव स्मरीणय बने रहते है। ऐसे बहु प्रतिभा के धनी नौजवानों में से एक प्रखर पत्रकार एवं रंगकर्मी स्व. सुरेन्द्र पुरी थे।  सुरेन्द्र पुरी का जन्म 17 अगस्त 1979 को बाड़ाहाट जनपद -उत्तरकाशी के स्व. श्री सत्यनारारण पुरी ,माता श्रीमती कृण्णा पुरी हुआ। परिवार में जेष्ट पुत्र होने से परिवार को सबसे अधिक लाड-प्यार मिला आप के पिछे एक भाइ नागेन्द्र पुरी एवं एक बहन सुषमा है।
इनकी सम्पूर्ण पढ़ाई- लिखाई चिन्यालीसौड में हुई। किशोरावस्था से ही रंग मंच व पत्रकारिता , फोटोगा्फी के प्रति उनके विशेष लगाव व रूचि के चलते उन्हांेने विभिन्न मंचों पर अभिनय किया। उत्तरकाशी की सांस्कृतिक परंपराओं को जीवित रखने के लिये आप ने लोोक गायक ओम बधाणी के साथ मिलकर  " लोकरंग" की स्थापना किया था। आप के मन में उत्तरकाशी के विकास की पीडा सदैव रही यही वजह रही कि उत्तरकाशी नगपालिका के नाम को बाड़ाहाट के नाम से करवाने के लिये तत्कालीन पालिका अध्यक्षा श्रीमती जयेन्द्री राणा से बोर्ड में प्रस्ताव पारित करवाया। सुरेन्द्र पुरी का एक  सपना था कि पालिका बाड़ाहाट के नाम से कैसे हो? तब तक चयन की सांस नही ली जबतक  के तत्का गंगोत्री क्षेत्र के  विधायक श्री विजयपाल सिंह सजवाण से शासनादेश नहीं करवाया था। नगरपालिका उत्तरकाशी का बाड़ाहाट के नाम से जैसे श्री सजवाण जी ने शासनादेश जारी करवाया उससे वे अंतियंत प्रसन्न होकर दौर -दौड कर मेरे पास आया और कहने लगे सेमवाल जी चलो तुम्हारे घर में शासनादेश आ चुका अब समाचार बनाना है कि बाड़ाहाट के नाम से अब नगरपालिका हो गई है। उनकी सामाजिक व धर्मिक कार्यो में गहरी रूचि  थी जिसेके लिये वे नंदा राजजात यात्रा, कुंभ मेला, सरनौल गांव पहुंच कर पारंपारकि पांडव नृत्य व रैणुका देवी मन्दिर देखना हो या मोरी क्षेत्रा के कर्ण मंदिर, दुर्योधन ,पोखू देवता, मासू, देवता सहित गंगा घाटी के सभी देवी -देवताओं  के मेले थोले में समाचार कबरेज के लिये जा चुके है। उत्तरकाशी बाड़ाहाट का थौलू का पारंपारकि स्वरूप देने के लिये कंडार देवता की रथ यात्रा  एवं  हाथी का स्वांग आदि निकाना भी सुरेन्द्र पुरी की देन थी।
वर्ष 2014 में प्रो0 शेखर पाठक द्वारा प्रत्येक दस वर्ष में आयोजित की जाने वाली ‘‘ अस्कोट- आराकोट‘‘ ।  
 
पद्यात्री


मार्च 2016 स्ट्रेट यूनियन आॅफ वर्किंग जर्नलिस्ट की बैठक के लिये उत्तकाशी से कर्नाटक की मेरे साथ  सबसे लंबी यात्रा थी। जनकवि बल्ली सिंह चीमा उनके पंसादीदा कवियों में एक थे। वे अक्सर इस जनगीत को गाया करते थे
’’ले मशालें चल पड़े हंै लोग मेरे गांव के
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के
कह रही है झोपड़ी ओर पूछते हैं खेत भी
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के .......। ’’  
 स्व.सुरेन्द्र पुरी को पत्रकाररिता,लेखन व  प्रेस फोटोग्राफी से विशेष लगाव था। यही वज रही कि लंबे समय तक उत्त्तरकाशी अमर उजाला में फोटोग्राफी का कार्य किया। इस के अतिरिक्त स्वतंत्र लेखन भी करते रहे। कई पत्र-पत्रिकाओं  में  इनके द्वारा  लिखे गये लेख प्रकाशित हुए है। सुरेन्द्र पुरी बेबाक पत्रकार थे जो मुंह में आया उसे सामने बोल देते थे। वर्तमान दौर में पत्रकारिता के नये तस्वीर से वे दुखी थे। वे उनका कहना था कि लोगों ने मिशन की पत्रकारिता को छोड़कर उगाई का साधन बना लिया इतना ही नहीं पत्राकारिता में ऐसे लोगों को पदार्पण हो रहा जिनका जनसरोकारों एवं पत्राकारिता जैसे से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नही है। पत्रकारिता को तथाकथित पत्रकारों ने बदनाम कर दिया है। उन्हांेने जिला पत्रकार संघ की बंैठक में साफ शब्दों में कहा था कि पहाड़  नशे व भ्रष्टाचार में प्रथम पायदान पर है इससे नाकम करने के लिय मीडिया  की भूमिका बहुत जरूरी है। लेकिन मीडिया की आड़ में पनप रहे ठेकेदारी  प्रथा से अब सब संभव नही है। पत्रकारतिा को जीवित रखने व नया आयाम देने के लिए उन्होंने 13 जनवरी 2019 को साप्ताहिक बाड़ाहाट टाइम्स समाचार पत्र की स्थापना की थी। लेकिन दुर्भाग्यवस उसका दुसरा अंक निकालने  से पहले वे खुद हमारे बीच नहीं रहे। जो उत्तरकाशी जनसरोकारों  कि पत्रकारिता के पुरोधा बेबाक आवाज हमेशा के लिये खमोश हो गई।