चार दिवसीय गंगानी वसंतोत्सव मेले का हुआ आगाज, देव डोलियों संघ राशों तांदी भी लगी ।।
:: चिरंजीव सेमवाल::
उत्तरकाशी। यमुुनाघाटी का पौराणिक गंगानी वसंतोत्सव (कुंड की जातर) मेले का गुरुवार को रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम से आगाज हो गया है। दोपहर में पूजा अर्चना के बाद विधिविधान के साथ बाबा बौखनाग, तटेश्वर महादेव एवं मां भद्रकाली की डोलियों के सानिध्य में बतौर मुख्यातिथि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चिन्द्रिया लाल एवं ब्लॉक प्रमुख सरोज पंवार ने रीबन काट कर मेले का शुभारंभ किया।
चार दिवसीय यह गंगानी वसंतोत्सव 16 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान मेले में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जायेंगे।
मेले के उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि ब्लॉक प्रमुख सरोज पंवार ने कहा कि हमारे यह पौराणिक मेले हमारी धरोहर हैं। इन मेलों (जातरों) से हमारी पुरानी परंपरा जुड़ी हुई। इस परंपरा को बनाये रखना हम सभी का कर्तव्य है। जिससे इन्हें संजोए रखकर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को विरासत के रूप में सौंप सकें। जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण ने अभी अतिथियों एवं मेलार्थियों का स्वागत कर धन्यवाद ज्ञापित किया।उन्होंने कहा कि यह हमारी पौराणिक परंपरा है।
मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की छात्राओं ने सरस्वती वंदना, स्वागत गान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया तथा विजय दिव्यांग स्कूल सहित विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। साथ ही तांदी एवं रासो नृत्य के साथ साथ नरेश ज्वाला, पीके मस्ताना, सजान राज एंड पार्टी द्वारा संस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए। जिनका मेलार्थियों ने खूब लुत्फ उठाया। वहीं मेले में विभिन्न विभागों के स्टाल भी लगे हैं, जिनके माध्यम से मेले में आए ग्रामीणों को सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं की जानकारी दी जा रही है। लोगों ने मेले में लगी चर्खी आदि का भी खूब लुत्फ लुत्फ उठाया। साथ ही श्रद्धालुओं ने यहां त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित किया।
इस मौके पर जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजल्वाण, बड़कोट नगर पालिका अध्यक्ष अनुपमा रावत, नौगांव नगर पंचायत अध्यक्ष शशिमोहन राणा, जिला पंंचायत सदस्य प्रदीप कैंंतूरा, मनीष रााणा, शशि कुुमाई, पुुुमन थपलियाल, सरोज, पूर्व जिलाध्यक्ष श्याम डोभाल, ज्येष्ठ उपप्रमुख कृष्ण राणा, कनिष्क उप प्रमुख दर्शनी नेगी, जयेंद्र सिंह रावत, सुमन प्रसाद डिमरी, कुलदीप बिजल्वाण, जिला पंचायत से अमित डिमरी, विक्रम रावत, रघुवीर बिष्ट, मनोज कुमार सहित बड़ी संख्या में मेलार्थी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन दिनेश भारती ने किया।
थान गांव जमदग्नि ऋषि का आश्रम
से जुडा गंगानी मेला
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बड़कोट यमुनोत्री मार्ग पर यमुना नदी के किनारे बसे एक छोटे से गॉव "गंगानी प्रतिवर्ष संक्रांति के दिन तीन दिन के मेले का आयोजन होता है ,यहाँ एक मंदिर है जिसके पास ही एक कुण्ड बना हुआ है, इस कुण्ड में गंगा का पानी है एवं कुण्ड में पायी जाने वाली मछलियाँ यमुना में पायी जाने वाली मछलियो से भिन्न हैं.यहाँ गंगा (भागीरथी) का पानी एक पत्थर द्वारा जमीन काटकर लाया गया है , यह पत्थर वही कुण्ड के पास में ही रखा गया है. मंदिर में गंगा एवं यमुना जी की मुर्तिया राखी गयी हैं.मेले में बहुत दूर दराज से बड़े श्रद्धा भाव से लोग आते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार ठान गॉव में जमदग्नि ऋषि का आश्रम था जो की गंगनाडी से मात्र ३ कि.मी पर स्थित है,ऋषि वह अपनी पत्नी रेणुका के साथ रहते थे,ऋषि नित्य प्रातः पूजा करते थे जिसके लिए जल उनकी पत्नी बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) से लाया करती थी, एक दिन रेणुका को जल लाने में देरी हुई जिससे ऋषि नाराज हुए और उन्होंने गंगा जी से प्रार्थना कि जिससे गंगा जी कि एक धारा गंगनाडी पहुंच गयी, ऋषि कि पत्नी रेणुका और बड़कोट के राजा सहस्त्रबाहु कि पत्नी वेणुका दोनों सगी बहने थी, एक बार राजा सहस्त्रबाहु ने बड़कोट में महायज्ञ किया इस यज्ञ में जमदग्नि ऋषि भी सपरिवार गए, यज्ञ समाप्त होने के बाद जब ऋषि वापस ठान पहुंचे तो रेणुका ने उनसे वैसा ही यज्ञ करने को कहा ,फिर ऋषि ने यज्ञ करने के लिए राजा इंद्रदेव से कामधेनु गाय मांगी जो इंद्र ने सहर्ष दे दी,यज्ञ में राजा सहस्त्रबाहु भी आये ,यज्ञ समाप्त होने पर सहस्त्रबाहु ने ऋषि से कामधेनु गाय कि मांग कि किन्तु ऋषि ने देने से इंकार कर दिया, राजा ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर ऋषि का सर काट डाला, राजा जब कामधेनु गाय को खोलकर लेजाने लगे तो गाय आकाश में उड़ गयी, राजा ने गाय को मारने के लिए तीर छोड़ा वह तीर गाय के खुर को चीरता हुआ निकल गया ,कहते हैं तभी से गाय बैलो के खुर के दो हिस्से होते हैं ,
जब कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रही जमदग्नि ऋषि के पुत्र परशुराम ने रेणुका के रोने कि आवाज सुनी तो तपस्या छोड़ कर थान आगये,अपने पिता के वध का सुनकर ,उसने बड़कोट जाकर सहस्त्रबाहु का सिर काट कर वही दबा दिया, रेणुका अपने पति के साथ थान गॉव में ही जलकर सती हो गयी थी, बाद में थान में इसी स्थान पर जमदग्नि ऋषि का मंदिर बनाया गया,और बड़कोट में आज भी सहस्त्रबाहु के किले को गढ़ के रूप में जाना जाता है।