"गाॅड आफ जस्टिस " के दरबार मैं पहुंचा मंत्री प्रसाद नैथानी।।
गरीबों की सर्वोच्च अदालत है नैटवाड़ क्षेत्र में।।
(चिरंजीव सेमवाल)
उत्तरकाशी। उत्तराखण्डी समाज अपनी संकृति, सभ्यता और परम्पराओं के लिए जाना जाता है। यहां का समाज आज भी कानून से अधिक अपनी लोक संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं से जाना जाता है। न्याय देवता के रूप में उत्तराखण्ड विशेषकर गढ़वाल मण्डल में पूजे जाने वाले पोखू महाराज के नाम से भी जाने जाते है। जनपद के मोरी विकासखण्ड में नैटवाड़ एक छाटो सा गाॅव है जहां हिमाचल प्रदेश तथा हरकीदून क्षेत्रा से दो छोटी-छोटी नदियां रूपिन व सुपिन आकर मिलती है। जहां से वे टौंस नदी का रूप लेती है। यही टौंस की जन्मभूमि नैटवाड़ पोखू महाराज की राजधनी है पोखू इस क्षेत्र का राजा , देवता व दैत्य है। ये इस क्षेत्र के प्रत्येक गाॅव में दरातियों , चाकुओं आदि के रूप में मिलते है, इनका पुजारी भी बड़ा श्रद्वेय माना जाता है जो पोखू देवता की ओर पीठ करके पूजा करता है ।
पोखूवीर देखना माना जाता अनिष्ट, पीठ करके की जाती पूजा ।।
स्थानीय लोगों का तर्क है कि इनका मुंह पाताल में और कमर का ऊपर का भाग पेट आदि ध्रती पर है, ये उल्टे हैं और नग्नावस्था में है। इसलिए इस हालत में इन्हें देखना अनिष्ट माना जाता है और इनकी ओर पीठ करके पूजा की जाती है। पोखूवीर से जुड़ी कई दंतकथाएं है।
किरिमर दानव ने पूरे क्षेत्र में एत्पात मचाया हुआ था। जनता को उसके अत्याचारों से बचने के लिए राजा दुर्योधन ने उससे युद्व किया और पराजित कर उसका सिर काट कर टौंस नदी में फेंक दिया।किरिमर दानव का सिर नदी की दिशा में बहने के बजाय उल्ट बहने लगा और रूपिन-सूपिन नदी के संगम नैटवाड़ में ही रूक गया। रूपिन नदी भराटसर झील से तो सूपिन स्वर्गरोहणी हिमशखरों से निकलती है। महाभारत मैं कौरव दल के युद्धा राजा दुर्योधन
ने किरिमर दानव के कटे सिर को नैटवाड़ में स्थापित कर वहां उसका मन्दिर बना दिया। नैटवाड़ का यही मंदीर अब पोखूवीर देवता के नाम से जाना जाता है। दूसरी दंतकथ के मुताबिक किरिमर या किलिबल दानव दरअसल महाभारत का वभुवाहन था,जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने चतुराई से वध् कर दिया था। इस क्षेत्र की खासियत है कि यहां के एक इलाके में कौरवों की पूजा की जाती है, तो ब्बावरव रवांईघाटी में पांडव पूजे जाते है। मसाली गाॅवमें तो पांडवों के मन्दिर है। नैटवाड़ से ही एक दो किलोमीटर उफपर देवरा में राजा कर्ण का भी मंदिर है। नैटवाड़ से 14 किमी. के ट्रैक पर सौड़ गाॅव में दुर्योधन का भी मंदिर है। सूपिन नदी के किनारे नैटवाड़ से 12 किमी. की दूरी पर स्थित सांकरी गाॅव में लकड़ी का भैरव का मन्दिर भी है।
गरीबों की सर्वोच्च अदालत है नैटवाड़ क्षेत्र में।।
नैटवाड़ क्षेत्र की जनता अपनी सब प्रकार की मनौतियां पोखू महाराज के नाम पर ही मानते है। नवम्बर में इस क्षेत्र के लोगों का मेला नैटवाड़ में लगता है , इस दौरान पूरे रात भर महिलाऐं व पुरूष यहां राश, तादी पर नाचते है इसके बाद देर रात्रि में पूजारी गाॅव के सम्बन्ध् में भविष्यावाणी करता है। पशुओं की खुशहाली, गाॅव में कृषि उत्पादन आदि , पूजारी की भविष्यावाणी सच साबित होती है। दूसरी ओर मोरी विकासखण्ड के यदि कि के साथ अन्याय करता है। तो वे लोग अपने देवता पर घात डाल देते है। जिससे वह आदमी अचानाक बीमार हो जात है। बाद में जब वह अपने पड़ीतों व पूजारियों के पास जाता है। तो बीमार आदमी पर नैटवाड़ के पोखू हाराज का दोष बताया जाता है। उसके बाद पोखू महाराज के दोष उतारने के लिए भेडी ;खाडू
की बली देनी पड़ती इस क्षेत्रा मे आज यहां प्रथा चली आर रही है। दूसारी ओर यदि कोई तागदवर आदमी किसी कमजोर आदमी को परेशान करता है। तो यहां के लोग पोखू देवता पर घात चढ़ा देते है। जिससे यहां देवता गलत आदिमी को परेशन कर न्याया दिलाता है। चमत्कारों से क्षेत्र के लोगों का इस देतवता के प्रति अटुट सम्बन्ध् जुड़ा है या यूं कहे कि नैटवाड़ क्षेत्र के पोखूू महाराज यहां का " गाॅड आफ जस्टिस" है। उत्तराकशी मुख्यालय से लगभग 160 किमी. दूर नैटवाड़ अपनी विशेषताओं एवं पोखू महाराज के मन्दिर के कारण एक न्याय का देवता है तो सैलानियों के लिए एक अनुखा आर्कषक है।
किरिमर दानव ने पूरे क्षेत्र में एत्पात मचाया हुआ था। जनता को उसके अत्याचारों से बचने के लिए राजा दुर्योधन ने उससे युद्व किया और पराजित कर उसका सिर काट कर टौंस नदी में फेंक दिया।किरिमर दानव का सिर नदी की दिशा में बहने के बजाय उल्ट बहने लगा और रूपिन-सूपिन नदी के संगम नैटवाड़ में ही रूक गया। रूपिन नदी भराटसर झील से तो सूपिन स्वर्गरोहणी हिमशखरों से निकलती है। महाभारत मैं कौरव दल के युद्धा राजा दुर्योधन
ने किरिमर दानव के कटे सिर को नैटवाड़ में स्थापित कर वहां उसका मन्दिर बना दिया। नैटवाड़ का यही मंदीर अब पोखूवीर देवता के नाम से जाना जाता है। दूसरी दंतकथ के मुताबिक किरिमर या किलिबल दानव दरअसल महाभारत का वभुवाहन था,जिसका भगवान श्रीकृष्ण ने चतुराई से वध् कर दिया था। इस क्षेत्र की खासियत है कि यहां के एक इलाके में कौरवों की पूजा की जाती है, तो ब्बावरव रवांईघाटी में पांडव पूजे जाते है। मसाली गाॅवमें तो पांडवों के मन्दिर है। नैटवाड़ से ही एक दो किलोमीटर उफपर देवरा में राजा कर्ण का भी मंदिर है। नैटवाड़ से 14 किमी. के ट्रैक पर सौड़ गाॅव में दुर्योधन का भी मंदिर है। सूपिन नदी के किनारे नैटवाड़ से 12 किमी. की दूरी पर स्थित सांकरी गाॅव में लकड़ी का भैरव का मन्दिर भी है।
गरीबों की सर्वोच्च अदालत है नैटवाड़ क्षेत्र में।।
नैटवाड़ क्षेत्र की जनता अपनी सब प्रकार की मनौतियां पोखू महाराज के नाम पर ही मानते है। नवम्बर में इस क्षेत्र के लोगों का मेला नैटवाड़ में लगता है , इस दौरान पूरे रात भर महिलाऐं व पुरूष यहां राश, तादी पर नाचते है इसके बाद देर रात्रि में पूजारी गाॅव के सम्बन्ध् में भविष्यावाणी करता है। पशुओं की खुशहाली, गाॅव में कृषि उत्पादन आदि , पूजारी की भविष्यावाणी सच साबित होती है। दूसरी ओर मोरी विकासखण्ड के यदि कि के साथ अन्याय करता है। तो वे लोग अपने देवता पर घात डाल देते है। जिससे वह आदमी अचानाक बीमार हो जात है। बाद में जब वह अपने पड़ीतों व पूजारियों के पास जाता है। तो बीमार आदमी पर नैटवाड़ के पोखू हाराज का दोष बताया जाता है। उसके बाद पोखू महाराज के दोष उतारने के लिए भेडी ;खाडू
की बली देनी पड़ती इस क्षेत्रा मे आज यहां प्रथा चली आर रही है। दूसारी ओर यदि कोई तागदवर आदमी किसी कमजोर आदमी को परेशान करता है। तो यहां के लोग पोखू देवता पर घात चढ़ा देते है। जिससे यहां देवता गलत आदिमी को परेशन कर न्याया दिलाता है। चमत्कारों से क्षेत्र के लोगों का इस देतवता के प्रति अटुट सम्बन्ध् जुड़ा है या यूं कहे कि नैटवाड़ क्षेत्र के पोखूू महाराज यहां का " गाॅड आफ जस्टिस" है। उत्तराकशी मुख्यालय से लगभग 160 किमी. दूर नैटवाड़ अपनी विशेषताओं एवं पोखू महाराज के मन्दिर के कारण एक न्याय का देवता है तो सैलानियों के लिए एक अनुखा आर्कषक है।
उत्तराखंड बचाओ देव याचना यात्रा"।।
उत्तराखंड आंदोलनकारी शहीद स्थल रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर से प्रारम्भ हुई उत्तराखंड बचाओ देव याचना यात्रा पूरे प्रदेश भर में देवभूमि के देवी देवताओं से भाजपा सरकार की निरंकुश नीतियों के खिलाफ याचना यात्रा पर है। प्रदेश भर में चलने वाली इस यात्रा के क्रम में कल दिनांक 18 फरवरी को यात्रा संयोजक पूर्व केबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के नेतृत्व में देव याचना यात्रा जनपद मुख्यालय उत्तरकाशी पहुंची है। मंत्रीप्रसाद नैथानी ने उत्तरकाशी जनपद की देवयाचना यात्रा के प्रथम पड़ाव पोखु महाराज के मंदिर नैटवाड़ से शुरू किया है।